वर्ष 1999 में भारतीय एयरलाइंस की उड़ान IC 814 The Kandahar Hijack होना देश के इतिहास में एक अहम घटना थी। इस विमान को आतंकवादियों ने काठमांडू से दिल्ली लौटते समय हाईजैक कर लिया और कंधार, अफगानिस्तान ले गए। इस संकट को सुलझाने के लिए भारत सरकार ने विशेष प्रयास किए और इस संकट के दौरान अजीत डोभाल की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही। कंधार की यात्रा के दौरान, आतंकवादियों ने अजीत डोभाल को एक खास तोहफा दिया था। आइए जानें कि वह तोहफा क्या था और डोभाल ने उसे अपने पास क्यों नहीं रखा।
कंधार का हाईजैक संकट
1999 में भारतीय एयरलाइंस की फ्लाइट IC 814 का हाईजैक होना एक गंभीर चुनौती थी। विमान में कुल 155 यात्री सवार थे और आतंकवादियों ने इस विमान को कंधार ले जाकर भारतीय सरकार पर दबाव डाला। इस संकट को सुलझाने के लिए भारत ने अपनी कूटनीतिक और सुरक्षा एजेंसियों का सहयोग लिया और अजीत डोभाल को इस मिशन पर भेजा।
अजीत डोभाल की भूमिका
अजीत डोभाल, जो उस समय भारतीय खुफिया एजेंसी के प्रमुख थे, ने कंधार में आतंकवादियों के साथ बातचीत की। उनकी कूटनीतिक समझ और धैर्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डोभाल ने आतंकवादियों की मांगों पर विचार किया और बातचीत के जरिए स्थिति को संभालने का प्रयास किया।
आतंकवादियों द्वारा दिया गया तोहफा
कंधार में बातचीत के दौरान, आतंकवादियों ने अजीत डोभाल को एक खास तोहफा दिया। यह तोहफा एक कंबल था, जो आतंकवादियों द्वारा डोभाल के प्रति एक प्रतीकात्मक सम्मान के रूप में पेश किया गया था। यह कंबल उस समय की जटिल परिस्थितियों में एक महत्वपूर्ण सांकेतिक वस्तु के रूप में देखा गया।
अजीत डोभाल ने कंबल को क्यों नहीं रखा
हालांकि कंबल को आतंकवादियों की ओर से सम्मान के रूप में दिया गया था, अजीत डोभाल ने इसे अपने पास रखने से इंकार कर दिया। इसका मुख्य कारण था कि इस कंबल को अपने पास रखना भविष्य में गलत सन्देश उत्पन्न कर सकता था। इसके अतिरिक्त, कंबल का कोई भी प्रतीकात्मक या कूटनीतिक महत्व भारतीय सुरक्षा नीति के खिलाफ जा सकता था।
डोभाल ने इस कंबल को अन्य अधिकारियों को सौंप दिया, ताकि इसका सही तरीके से प्रबंधन किया जा सके और यह आतंकवादियों के साथ समझौते या संवाद का कोई अप्रिय संकेत न बने।
IC 814 The Kandahar Hijack की घटना एक महत्वपूर्ण सुरक्षा संकट थी और अजीत डोभाल की भूमिका इस संकट को सुलझाने में अत्यंत महत्वपूर्ण रही। आतंकवादियों द्वारा दिया गया कंबल एक महत्वपूर्ण प्रतीक था, लेकिन डोभाल ने इसे न रखकर अपनी सुरक्षा और नैतिकता के उच्च मानकों को बनाए रखा। इस घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी नैतिकता और सही दृष्टिकोण को कायम रखा जा सकता है।